अब उदास होने को हमारा मन नहीं करता,
तन्हा हो या भीड़ में अपना सोच नहीं मरता।
असलियत आ गयी है सामने
पूरे जमाने की
ख्याली घोड़े पर सवार लोग
करते हैं दौड़ जीतने के दावे
सौदे के सम्मान से हर कोई झोली भरता।
कहें दीपक बापू
अपनी कलम चलती जब कागज पर,
या नाचती हैं टंकित कर,
होठों पर हंसी खुद-ब-खुद आ जाती है
लोगों ने भर ली झोली सामानों से
हम शब्दों के भंडार से खुश हैं
मुश्किल है आज के दौर में
अपने दिल और दिमाग को जिंदा रखना
यह हर कोई जुटा है खुशियां ढूंढने में
जिंदा रहने के लिये हर पल आदमी मरता।
तन्हा हो या भीड़ में अपना सोच नहीं मरता।
असलियत आ गयी है सामने
पूरे जमाने की
ख्याली घोड़े पर सवार लोग
करते हैं दौड़ जीतने के दावे
सौदे के सम्मान से हर कोई झोली भरता।
कहें दीपक बापू
अपनी कलम चलती जब कागज पर,
या नाचती हैं टंकित कर,
होठों पर हंसी खुद-ब-खुद आ जाती है
लोगों ने भर ली झोली सामानों से
हम शब्दों के भंडार से खुश हैं
मुश्किल है आज के दौर में
अपने दिल और दिमाग को जिंदा रखना
यह हर कोई जुटा है खुशियां ढूंढने में
जिंदा रहने के लिये हर पल आदमी मरता।
लेखक एवं कवि-दीपक राज कुकरेजा ‘‘भारतदीप,
ग्वालियर मध्यप्रदेश
writer and poet-Deepak raj kukreja "Bharatdeep"
Gwalior Madhyapradesh
लेखक और संपादक-दीपक "भारतदीप",ग्वालियर
poet, writer and editor-Deepak 'BharatDeep',Gwalior
‘दीपक भारतदीप की हिन्दी-पत्रिका’ पर मूल रूप से लिखा गया है। इसके अन्य कहीं भी प्रकाशन की अनुमति नहीं है।poet, writer and editor-Deepak 'BharatDeep',Gwalior
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