3 अप्रैल 2014

तख्त की जंग पर दो क्षणिकायें-हिन्दी व्यंग्य क्षणिकायें(takhta ki zang two short poem's)



कोई जीतता कोई हारता है,
तख्त की जंग में चलते हैं
अब वीरों के बाण अपने मुख से
कोई किसी को नहीं मारता है।
कहें दीपक बापू  रणनीति बनती है
वातानुकूलित कक्षों में
रण होता है मशीनों में
महल पहुंचता है वही योद्धा
प्रचार के बाज़ार में
प्रतिद्वंद्वी पर बाज़ी मारता है।
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घोड़ा घास से यारी करे
भूखा मर जायेगा,
तख्त की जंग में बनेगा जो दरियादिल
वह बोलने में डर जायेगा।
कहें दीपक बापू बंदूकों से जीत आसान होती है
जहां बयान करते है तय काबलियत
अच्छे खासे की अक्ल मंद होती है,
नये ज़माने में तीरों की तरह जो शब्द चलायेगा
वही महल का रास्ता तय कर जायेगा।
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लेखक एवं कवि-दीपक राज कुकरेजा ‘‘भारतदीप,
ग्वालियर मध्यप्रदेश
writer and poet-Deepak raj kukreja "Bharatdeep"
Gwalior Madhyapradesh
लेखक और संपादक-दीपक "भारतदीप",ग्वालियर
poet, writer and editor-Deepak 'BharatDeep',Gwalior
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