7 फ़रवरी 2015

सपने और रोटी का सच-हिन्दी कविता(sapane aur roti ka sach-hindi poem)



केवल सपनों पर चर्चा में
बातों के  दौर
कब तक चलने थे।

कभी तो रोटीे के लिये
चूल्हे जलने थे।

कहें दीपक बापू इंसानों पर
जरूरत की गुलामी का बोझ
हमेशा रहता है,
कुछ देर तक मुस्कराहट
रहे चेहरे पर
फिर तो दर्द ही सहता है,
कौन साथ देता
लंबे समय तक
दिन की  बेचैनी के बाद
रात को नींद में
हाथ ही तो सभी का मिलने थे।
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दीपक राज कुकरेजा ‘‘भारतदीप’’
ग्वालियर मध्यप्रदेश
Deepak Raj Kukreja "Bharatdeep"
Gwalior Madhyapradesh
संकलक, लेखक और संपादक-दीपक राज कुकरेजा ‘भारतदीप’,ग्वालियर 

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