खाये पीये अघाये लोग कहां जायें, यूं ही द्वंद्व में मन लगायें।
‘दीपकबापू’ मौन से रखे बैर, लोग शोर में सिर मारने जायें।।
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अगर वर्षा हो तो छाते से बचा लें, धैर्य हो तो अमर्ष पचा लें।
‘दीपकबापू’ स्वयं नाचते दौलत पर, शक्ति नहीं कि हर्ष पचा लें।
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सम्मान लेकर महंगे होते बोल, सुविधा की तराजू में भारी तोल।
‘दीपकबापू’ जाने मान पाने की कला, पोल होने से ही बजे ढोल।।
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पुराने विचार का भूत पीछे, भविष्य क्या खाक चमकायेंगे।
दीपकबापू मुर्दों के दूत बने, रचना में राख ही सजायेंगे।।
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दूध से दही मक्क्खन बने, एक एक कदम से राह बने।
दीपकबापू ज्ञान विज्ञान समझें, चिंता से चिंत्तन चाह बने
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हृदय की उष्मा ठंडा करे, ऐसी बर्फ बाज़ार में न मिले।
‘दीपकबापू’ मृत संवेदनाओं के बीच, प्रेम फूल न खिले।।
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कातिलों के साथी नकाब पहने, शांति के शब्दों से बनाते गहने।
दीपकबापू मक्कारों की सभा में, वफा की इमारत लगती ढहने।।
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किताब लिखकर सम्मान पाये, दूजा तुलसी कबीर रहीम न कोई।
दीपकबापू हैरान है यह देख, हिन्दी ने दगाबाजों की पालकी ढोई।।
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हर कदम पर वादा झूठा मिला, हर जगह यकीन छूटा मिला।
‘दीपकबापू’ असरदारों की दुनियां में, दिल का तार टूटा गिला।।
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कातिलों के साथी नकाब पहने, शांति के शब्दों से बनाते गहने।
दीपकबापू मक्कारों की सभा में, वफा की इमारत लगती ढहने।।
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किताब लिखकर सम्मान पाये, दूजा तुलसी कबीर रहीम न कोई।
दीपकबापू हैरान है यह देख, हिन्दी ने दगाबाजों की पालकी ढोई।।
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हर कदम पर वादा झूठा मिला, हर जगह यकीन छूटा मिला।
‘दीपकबापू’ असरदारों की दुनियां में, दिल का तार टूटा गिला।।
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दीपक राज कुकरेजा ‘‘भारतदीप’’
ग्वालियर मध्यप्रदेश
ग्वालियर मध्यप्रदेश
Deepak Raj Kukreja "Bharatdeep"
Gwalior Madhyapradesh
संकलक, लेखक और संपादक-दीपक राज कुकरेजा ‘भारतदीप’,ग्वालियर
athor and editor-Deepak Raj Kukreja "Bharatdeep",Gwalior
http://zeedipak.blogspot.com
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