पिता ने अपनी पूरी जिंदगी छोटी दुकान पर गुजारी और वह नहीं चाहते थे कि उनका पुत्र भी इसी तरह अपनी जिंदगी बर्बाद करे। उन्होंने अपने पुत्र को खूब पढ़ाया। पुंत्र कहता था कि ‘पापा, मुझे नौकरी नहीं करनी!
पिता कहते थे कि-‘नहीं बेटे! धंधे में न तो इतनी कमाई है न इज्जत। बड़ा धंधा तो तुम कभी नहीं कर पाओगे और छोटा धंधा में करने नहीं दूंगा। नौकरी करोगे तो एक नंबर की तनख्वाह के अलावा ऊपरी कमाई भी होगी।’
पुत्र ने खूब पढ़ाई की। आखिर उसे एक कंपनी में नौकरी मिल गयी। जब पहले दिन वह लौटा तो पिता ने पूछा-‘कैसी है नौकरी? कमाई तो ठीक होगी न!’
पुत्र ने कहा-‘हां, पापा नौकरी तो बहुत अच्छी है। अच्छा काम करूंगा तो बोनस भी मिल जायेगा। थोड़ा अतिरिक्त काम करूंगा तो वेतन के अलावा भी पैसा मिल जायेगा।’
पिता ने कहा-‘यह सब नहीं पूछ रहा! यह बताओ कहीं से इसके अलावा ऊपरी कमाई होगी कि नहीं। यह तो सब मिलता है! हां, ऐसी कमाई जरूर होना चाहिये जिसके लिये मेहनत की जरूरत न हो और किसी को पता भी न चले। जैसे कहीं से सौदे में कमीशन मिलना या कहीं ठेके में बीच में ही कुछ पैसा अपने लिये आना।’
पुत्र ने कहा-‘नहीं! ऐसी कोई उम्मीद नहीं है। यह सारा काम तो बड़े स्तर के अधिकारी करते हैं और फिर कंपनी में इस तरह की कोई कमाई नहीं कर सकता।’
पिता ने कहा-‘तुझे पढ़ाना लिखाना बेकार गया! एक तरह से मेरा सपना टूट गया। तुझे ऐसी ही कंपनी मिली थी नौकरी करने के लिये जहां ऊपरी कमाई करने का अवसर ही न मिले। मैं तो सोच रहा था कि ऊपरी कमाई होगी तो शान से कह सकूंगा। वैसे तुम अभी यह बात किसी से न कहना। हो सकता है कि आगे ऊपरी कमाई होने लगे।’
पुत्र ने कहा-‘इसके आसार तो बिल्कुल नहीं है।’
पिता ने कहा-‘प्रयास कर देख तो लो। प्रयास से सभी मिल जाता है। वैसे अब तुम्हारी शादी की बात चला रहा हूं। इसलिये लोगों से कहना कि ऊपरी कमाई भी होती है। लोग आजकल वेतन से अधिक ऊपरी कमाई के बारे में पूछते हैं। इसलिये तुम यही कहना कि ऊपरी कमाई होती है। फिर बेटा यह समय है, पता नहीं कब पलट जाये। हो सकता है कि आगे ऊपरी कमाई का जरिया बन जाये। इसलिये अच्छा है कि तुम कहते रहो कि ऊपरी कमाई भी होती है इससे अच्छा दहेज मिल जायेगा।’
पुत्र ने कहा-‘पर पापा, मैं कभी ऊपरी कमाई की न सोचूंगा न करूंगा।’
पिता ने कहा-पागल हो गया है! यह बात किसी से मत कहना वरना तेरी शादी करना मुश्किल हो जायेगा। हो भी गयी तो जीवन गुजारना मुश्किल है।
पुत्र चुप हो गया। पिता के जाने के बाद वह घर की छत की तरफ देखता रहा।
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*‘दीपकबापू’ जीवन की चाल टेढ़ी कभी सपाट, राह दुर्गम भाग्य जो सुगम पायें।।*
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5 वर्ष पहले
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