11 जुलाई 2009

मशहूरी का राज-व्यंग्य कविता (mashahuri ka raz-vyangya kavita)

हर इंसान खड़ा है हाथ में लिए ताज
कोई आकर पहना दे
इस इंतजार में।
विरला ही कोई बेताज बादशाह होता
जो रखता सभी के सिर पर ताज
बिना सौदा किये निकल जाता
हाथ उठाकर कुछ नहीं मांगता
चलता है मस्त हाथी की तरह
इस बाजार में।
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सजे संवरे चेहरे
हाथ में पकड़े हैं ताज।
अपने ही सिर पर पहन लेते हैं
या कर लेते हैं
एक दूसरे के साथ सौदा
चमकाते हैं एक दूसरे का चरित्र
बना लेते हैं कामयाबी का
काल्पनिक चित्र
यही है उनकी मशहूरी का राज।

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