भले ही वह संख्या कम है पर हिंदी भाषा में अपने ब्लाग अन्य भाषाओं में पढ़े जाते देखकर अचरज तो होता है। स्पष्टतः यह लगने लगा है कि अंतर्जाल पर जब आप किसी भाषा में लिख रहे हैं तो केवल आप उस भाषा के लेखक नहीं हैं बल्कि उस समूह के भावों के प्रवर्तक भी हैं। इस लेखक ने गूगल के अनुवाद टूलों को में अपने ब्लागों को दूसरी भाषा में पढ़े जाते देखा है। यह प्रतीत होता है कि हिंदी से अन्य भाषाओं में अधिक शुद्ध अनुवाद हो रहा है क्योंकि कोई शब्द अनुवाद से परे नहीं रह गया। हिंदी के शब्दों को पहले दूसरी भाषा में अनुवाद करके देखा। फिर उस अनुवाद को अंग्रेजी में किया तो देखा तो पाया कि उनका अनुवाद ठीक हो रहा है।
जिन भाषाओं में अपने ब्लाग को पढ़े जाते देखा उनमें चीनी, जापानी और हिब्रू शामिल हैं। अब अन्य भाषाओं से हिंदी में अनुवाद कैसे होगा इस पर भी काम करने का प्रयास करेंगे। भाषाई दृष्टि से सिकुड़ रहे विश्व में यह परिवर्तन देखने लायक होगा। यह लेखक आज भी भारत के ही उस अंग्रेजी ब्लाग लेखक को याद करता है जिसने यह भविष्यवाणी की थी कि विश्व में भाषाई दीवार अधिक समय तक नहीं चलेगी।
गूगल ने इस विश्व में एक क्रांतिकारी परिवर्तन लाने का प्रयास किया है जिसके परिणाम अब दृष्टिगोचर होने लगे हैं। इधर यह सुनने में आ रहा है कि गूगल को याहू और माइक्रोसोफ्ट चुनौती देने की योजना बना रहे हैं। पता नहीं उनकी क्या योजनायें होंगी पर इतना तय है कि याहू भारत के आम प्रयोक्ताओं में अधिक उपयोग में लाया जाता है जबकि गूगल रचनाधर्मी और व्यापारिक क्षेत्रो की पंसद है।
अंतर्जाल पर हिंदी लिखवाने के लिये जो गूगल ने योगदान दिया है उसे अनदेखा तो करना कठिन है। याहू भारतीय जनमानस में लोकप्रिय इसलिये बना हुआ है क्योंकि उसके बारे में यह भ्रम है कि एक भारतीय अभिनेता ने बनाया था जिसने अपनी फिल्म में याहू याहू कर गाना भी गया था। इसके बावजूद याहू की कोई हिंदी के लिये कोई खास भूमिका नहीं है। जो पाठक इस पाठ को पढ़ रहे हैं उन्हें यह पता होना चािहये कि इस हिंदी के पीछे गूगल के टूलों की महत्वपूर्ण भूमिका है।
इधर ब्लागों के आवागमन पर दृष्टिपात करने से भी यह पता चलता है कि याहू से पाठ पठन /पाठक संख्या नगण्य है जबकि गूगल का योगदान अधिक है। याहू से अधिक तो वेबदुनियां तथा दूसरे सर्च इंजिनों से पाठक आ रहे हैं। इसका कारण भी है। याहू ने हिंदी में अपना वर्चस्व जमाने के लिये एक हिंदी प्रकाशन से तालमेल किया है। जब पाठक उसका मुख्य पृष्ठ खोलता है तो वहां उस प्रकाशन द्वारा लगाये गये हिंदी में स्तंभ दिख जाते हैं। पाठक उन्हीं में उलझकर रह जाता है। यह स्तंभ केवल पुराने स्थापित या प्रसिद्ध लेखकों से ही सुजज्जित है। पाठक वहां आकर शायद ही हिंदी में लिखा शब्द पढ़ने का प्रयास करे। उसे पता भी नहीं होगा कि हिंदी में अंतर्जाल पर लिखने वाले अन्य ऐसे लेखक भी हैं जो प्रसिद्ध न हों पर सार्थक लिखते हैं। सच बात तो यह है कि याहू कि अंतर्जाल पर हिंदी लाने में कोई अधिक भूमिका नहीं है। इसके विपरीत गूगल ने न केवल रोमन लिपि से हिंदी में लिखने का टूल दिया है बल्कि कृतिदेव को यूनिकोड में परिवर्तित करने वाला टूल स्थापित कर हिंदी को सहज भाव से लिखने की प्रेरणा भी दी है।
भारत से बाहर गूगल को अधिक महत्व मिल रहा है। इसका कारण यह है कि उसने सर्ज इंजिन से खोज कर आने वाले पाठकों को ब्लाग/ वेबसाईटों को पढ़ने के लिये वहीं अनुवाद टूल भी लगा दिया है। इसी कारण हिंदी में लिखे गये ब्लाग अन्य भाषाओं में तथा अन्य भाषाओं से हिंदी में पढ़ना सहज हो गया है। यही कारण है कि रचानाधर्मी तथा व्यवसायी गूगल को अधिक पसंद करते हैं। इतना ही नहीं गूगल ने अपने अनेक कार्यक्रमों का निर्माण इस तरह किया है कि लोग उसके साफ्टवेयरों का उपयोग सार्वजनिक रूप से कर सकते हैं। गूगल ग्रुप में हिंदी टूल भारतीय विद्वानों ने ही लगाये हैं जबकि याहू इस तरह की सुविधा नहीं देता। सबसे बड़ी बात यह है कि अनुवाद और हिंदी लिखने के लिये जो गूगल ने जो सुविधा दी है उसने हिंदी लेखकों को बहुत सहायता मिली है।
इस लेखक को जितने भी मित्र मिले उन्होंने अपना ईमेल सबसे पहले याहू पर बनाया। आपसी बातचीत में चर्चा होने के बाद ही उन्होंने जीमेल बनाया।
इस लेखक का स्पष्ट मानना है कि याहू की लोकप्रियता से हिंदी को कोई लाभ नहीं है। उसने हिंदी के लिये बस इतना ही किया है कि एक पुराने प्रकाशन संस्थान को उसका जिम्मा दे दिया है। इसके विपरीत गूगल आम आदमी के जज्बातों को बाहर लाने के लिये जोरदार प्रयास कर रहा है। अन्य भाषाओं में हिंदी ब्लाग पढ़े जा सकते हैं यह बात रोमांचित करती है। साथ ही यह भी कि हम अन्य भाषाओं का लिखा हम हिंदी में पढ़ सकते हैं।
एक हिंदी लेखक के नाते अब इस बात पर भी विचार करना होगा कि मामला अब केवल हिंदी लेखन तक ही सीमित नहीं है। आपके पाठ विश्व स्तर पर पढ़े और समझे जायेंगे। इसलिये हिंदी के मठाधीशों से सम्मान या इनाम की आशा की बजाय अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर अपनी बात पहुंचाने के लिये इस ब्लाग सुविधा का उपयोग करें। उन्हें यह समझना चाहिये कि वह किसी सीमित समूह के लिये वह अपना पाठ नहीं लिख रहे बल्कि पूरे विश्व में उसे कहीं भी कोई किसी भाषा में भी पढ़ सकता है। लिखकर तत्काल वाह वाही या सम्मान पाने का मोह न हो तो ही यह बात रोमांचित कर सकती है।
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5 वर्ष पहले
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