एक अभिनेत्री के स्वयंबर
धारावाहिक से प्रभावित होकर
निर्देशक ने अपने लेखक से कहा
‘अपनी फिल्म की अभिनेत्री के लिये
कोई स्वयंबर का दृश्य लिखकर लाओ
भले ही कहानी का हिस्सा नहीं है
पर तुम उसके लिये सपना या ख्वाब बनाओ
मगर याद रखना अपनी फिल्म का हीरो ही
वह स्वयंबर जीते
साथ ही उसमें एक गाना भी हो
जिसमें लोग नजर आयें शराब पीते
मैंने समझा दिया तुम अब दृश्य लिख लाओ।’
लेखक ने कहा-
‘स्वयंबर का दृश्य ख्वाब में भी लिख देता
पर यह अभिनेता और अभिनेत्री
असल जिंदगी और फिल्म दोनों में
आशिक माशुका का रिश्ता बनाये हुए हैं
इसलिये लोगों को नहीं जमेगा।
स्वयंबर का दृश्य तो
प्यार और विवाह से पहले लिखा जाता है
इस कहानी में नायक पहले ही
गुंडों से बचाकर
नायिका का दिल जीत चुका है,
बस उसका काम
माता पिता की अनुमति पर रुका है,
फिर आप किस चक्कर में पड़े हो
अपनी फिल्मों में
नायक द्वारा नायिका को
गुंडों से बचाने का दृश्य
कभी स्वयंबर से कम नहीं होता
स्वयंबर में तो टूटता है धनुष
या मछली की आंख फूटती है,
अपने फिल्मी स्वयंबर में तो
एक साथ अनेक खलनायकों की
टांग टूटती है,
दूसरे का खून बहते देखकर
जनता असल मजा लूटती है,
आपको मजा नहीं आ रहा तो
नायक द्वारा नायिका को बचाने के दृश्य में
कुछ गुंडों की संख्या बढ़ाओ
दिल के खेल में यही हिट फार्मूला है
कोई नया न आजमाओ।
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*एकांत में तस्वीरों से ही दिल बहलायें, भीड़ में तस्वीर जैसा इंसान कहां
पायें।*
*‘दीपकबापू’ जीवन की चाल टेढ़ी कभी सपाट, राह दुर्गम भाग्य जो सुगम पायें।।*
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5 वर्ष पहले
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