19 जुलाई 2010

धर्मार्थ कर-लघु हास्य व्यंग्य (dharmarth kar-laghu hasya vynagya)

सुबह घर से निकलते समय पत्नी ने अपने पति से कहा-‘मैं सर्वशक्तिमान के दरबार के निर्माण कार्य के लिये चंदा देने का वादा करके आयी हूं। अब तो आपकी तनख्वाह बहुत अच्छी है इसलिये कुछ पैसे देना तो मैं वहां दे आऊंगी।’
पति ने कहा-‘कितनी बात कहा है कि तनख्वाह की बात मत किया करो। अपना घर तो ऊपरी कमाई से ही चलता है। आजकल प्रचार माध्यम बहुत ताकतवर हो गये हैं इसलिये ऊपरी कमाई आसान नहीं रही है। इधर तुम धर्मार्थ काम के लिये पैसा मांगने लगी हो। आज इस दरबार में तो कल उस दरबार में चंदा देना बंद कर दो।
पत्नी ने कहा-‘कैसी बात करते हो? सर्वशक्तिमान की कृपा से इतनी अच्छी तनख्वाह हो गयी है...................’’
पति ने कहा-‘फिर वही बात! सर्वशक्तिमान की कृपा से तनख्वाह नहीं मिलती। वह तो अपनी मेहनत का फल है। उसकी कृपा से तो बस ऊपरी कमाई हो सकती है, जिसमें आजकल कमी हो गयी है फिर दफ्तर में अब नज़र भी रखी जाने लगी है। खतरा बढ़ गया है।
पत्नी उदास हो गयी तो पति ने कहा-‘ठीक है! देखता हूं आज कोई मुर्गा फंसा तो उससे अपनी कमाई के साथ ही सर्वशक्तिमान के नाम पर धर्मार्थ कर भी मांग लूंगा। अगर तुम इसी तरह धर्म का काम करती रही तो मुझे पता नहीं कितने लोगों से यह धर्मार्थ कर मांगना पड़ेगा। अब मैं चलता हूं और सर्वशक्तिमान से प्रार्थना करो कि आज ऊपरी कमाई के साथ धर्मार्थ कर भी वसूल हो जाये।’
पत्नी खुश हो गयी और बोली-‘अच्छा! आप जाओ मैं सर्वशक्तिमान से प्रार्थना करती हूं कि आज आपको कोई धर्मार्थ कर देने वाला मिल जाये।’
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कवि, लेखक और संपादक-दीपक भारतदीप, ग्वालियर
http://anant-shabd.blogspot.com

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