25 मार्च 2014

सड़क से महल तक-हिन्दी व्यंग्य कविता(sakas se mahal tak-hindi vyangya kavita)



कुछ दिन सड़क पर  प्रदर्शन करने से मिल जाता है महल,
कुछ दिन हाथ ही तो जोड़ना है फिर लोग स्वयं करेंगे पहल।
ऊंची आवाज में नारे जोर से वादों के गीत  धीमे से मंच पर गाने हैं,
तख्त पर चढ़े गये तो फिर कौन लोग सवाल  पूछने आने हैं,
जज़्बातों के बाज़ार में सपने बहुत आसानी से बिकते हैं,
कीमत लेकर खिसकते है सौदागर फिर कहां वह टिकते हैं,
आदर्श की बातें करते हुए पर्दे पर खबर की तरह उनको चलना है,
चर्चा में उगते सूरज की तरह बने रहना कभी नहीं  ढलना है,
कहें दीपक बापू देखते आ रहे बरसों से समाज सेवकों की चालाकियां
उनकी अदाओं और शब्दों से ही ज़माना जाता है बहल।
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लेखक एवं कवि-दीपक राज कुकरेजा ‘‘भारतदीप,
ग्वालियर मध्यप्रदेश
writer and poet-Deepak raj kukreja "Bharatdeep"
Gwalior Madhyapradesh
लेखक और संपादक-दीपक "भारतदीप",ग्वालियर
poet, writer and editor-Deepak 'BharatDeep',Gwalior
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