26 सितंबर 2015

गूगल जैसी संस्था भारत में क्यों नहीं हो सकती(Google jaisi Company Bharat mein Kyon nahin)

                                   
                                   जब भारत में गूगल जैसी अंतर्जालीय संस्था होगी तभी हम मान सकते हैं कि हमारा देश एक वैश्विक शक्ति है।  हालांकि जिस तरह भारत के धनपतियों का रवैया उसे देखते हुए आगामी एक सौ वर्ष तक इसकी संभावना नहीं है।  अमेरिका सहित अन्य विकसित राष्ट्र अपने कुशल प्रबंधन के गुण के साथ ही इस मुकाम पर पहुंचे हैं जहां विकासशील देश बरसों तक इसकी कल्पना भी नहीं कर सकते। वहां कर्मचारियों को प्रदर्शन और योग्यता के आधार पद के साथ पैसा दिया जाता है।  नौकरी कोई सुरक्षा नहीं होती पर  इससे वह निरंतर बेहतर प्रदर्शन के लिये तत्पर होते हैं। अक्सर भारत में ऐसी कंपनी न होने की शिकायत की जाती है पर अंतविरोधों में चल रही आर्थिक व्यवस्था में इसकी संभावना नहीं है कि कानूनी तौर से नौकरी की सुरक्षा समाप्त की जाये जबकि पूंजीतंत्र  इसके लिये नियम अपने अनुसार चाहता है।
                                   दूसरी समस्या यह है कि भारत सहित एशियाई देशों में आबादी का संकट हमेशा रहता है। इसी वजह से एशियाई देश सदियों से मानव निर्यात के लिये जाने जाते हैं।  हम जिन भारतीय मूल के लोगों का विदेशों में आज नाम प्रतिष्ठित देखते हैं उनके पूर्वज इसी तरह ही यहां से गये थे। उनके पूर्वजों ने वहां परिश्रम कर अपना जो स्थान बनाया उसका लाभ उनकी आगामी पीढ़ी को मिला। अब तो मानवश्रम की ऐसी सुविधा हो गयी है कि भारत में शिक्षा प्राप्त लोग अपने जीवनकाल में ही ऐसी उपलब्धि प्राप्त की जिसका प्रचार यहां होने से अनेक युवा अब विदेश जाने को लालायित रहते हैं। अनेक जागरुक लोग सवाल करते हैं कि जब भारत के लोग बाहर जाकर अच्छा करते हैं तो यहां क्यों नहीं कर पाते? हमारा जवाब है कि कुप्रबंध की प्रवृत्ति से निजात पाये बिना यह सब संभव नहीं है।  वैसे हमारे देश के पूंजीपतियों पर भी यह सवाल उठता है जो विदेशों में जाकर सफल होते हैं पर भारत में उनकी कोई पहचान नहीं है।  इसका कारण यह है कि वह बाहर जाकर वहां श्रमिकों को बंधुआ नहीं मानते-पूंजीवादी देश भी श्रमिकों के हित में कानून बनाते हैं-पर अपने देश में उनका नजरिया विकृत होता है।  सीधी बात कहें तो देश में श्रमिक और पूंजीपति के बीच प्रबंध की समस्या है। इसलिये जब तक आबादी का प्रकोप रहेगा इसकी संभावना कम ही है कि भारत कभी स्वतंत्र आर्थिक महाशक्ति बन पायेगा।  गूगल में चालीस प्रतिशत भारतीय या भारतीय मूल के लोग काम करते हैं। तय बात है कि भारत में उनकी लिये कोई क्षेत्र नहीं है और वह चाहकर भी यहां अपना प्रदर्शन वैसा नहीं कर सकते जैसा अमेरिका में कर रहे हैं।  वैसे अमेरिका की तो छोड़िये हम चीन और ईरान से भी इस मामले में हम पीछे हैं।
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दीपक राज कुकरेजा ‘‘भारतदीप’’
ग्वालियर मध्यप्रदेश
Deepak Raj Kukreja "Bharatdeep"
Gwalior Madhyapradesh
संकलक, लेखक और संपादक-दीपक राज कुकरेजा ‘भारतदीप’,ग्वालियर 

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