25 सितंबर 2015

अमृत और शराब-हिन्दी कविता(Amrit aur Sharab)


फारसी पढ़कर
तेल बेचने वाले
आज भी मिल जाते हैं।

सुधारवादी योद्धाओं के
अभियानों का सौदा करते
राज भी मिल जाते हैं।

कहें दीपकबापू भलाई पर
रोटी चलाने वाले
रखते दलाली की चाहत
दूसरा खाये मलाई
देखकर होते आहत
अमृत के नाम पर
भलाई बाज़ार में शराब बेचते
बाज़ भी मिल जाते हैं।
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दीपक राज कुकरेजा ‘‘भारतदीप’’
ग्वालियर मध्यप्रदेश
Deepak Raj Kukreja "Bharatdeep"
Gwalior Madhyapradesh
संकलक, लेखक और संपादक-दीपक राज कुकरेजा ‘भारतदीप’,ग्वालियर 

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