12 सितंबर 2015

प्रगतिशील युग खत्म हुआ हिन्दी अब अंतर्जाल युग में प्रविष्ट-हिन्दीदिवस व भारतनीति पर नया पाठ(Pragatishil yug katma ab Hindi antrajal yug mein pravisht-NewPost on Hindi Diwas BharatNiti

                                   अब समय आ गया है जब राज्य प्रबंधन को अब संगठित प्रचार माध्यमों के विज्ञापनयुक्त चर्चाओं से अलग हटकर सामाजिक जनसंपर्क के संदेशों के आधार पर भारत की नीतियां बनाना चाहिये। संगठित प्रचार माध्यम अपने समाचारों तथा बहसों में महत्वपूर्ण विषयों सतही शैली में कार्यक्रम बनाते हैं। एक तरह से जनमानस को मनोरंजन की छांव में छिपाते हैं जबकि सामाजिक जनसंपर्क उसका सही प्रतिबिंब होेने के साथ ही भारत नीति का आधार होना चाहिये।
जनमानस में जो निराशा है उसे सामाजिकजनसंपर्क पर देखा जा सकता है जिसे संगठित प्रचार माध्यम विज्ञापनों की भीड़ में जनमानस का ध्यान बंटाकर हल्केफुल्के ढंग से  दिखाते हैं। संगठित प्रचारमाध्यमों के दबाव में भारत की नीति से जुड़े फैसले लेना या बदलना खतरनाक है यह बात सामाजिकजनसंपर्क पर कही जाती है। हिन्दी टीवी चैनल सामाजिक जनसंपर्क वाले हिन्दी लेखक को कभी अपनी बहसों में नहीं बंुलाते क्योंकि उन्हें रूढ़िवादी पेशेवर विद्वान विज्ञापन का सहारा देते हैं। नये तर्क या विचार इस हिन्दी समाज में बने इससे व्यवसायिक प्रकाशन संस्थान भयभीत लगते हैं।
                                   इधर भोपाल में विश्व सम्मेलन के दौरान  पिछले आठ दस वर्ष से अंतर्जाल पर सक्रिय हिन्दी लेखकों न बुलाने से फैली निराशा अत्यंत दुःखद है। अनेक अंतर्जालीय लेखकों ने इस पर अपनी मायुसी जताई है।  हमारा मानना है कि आधुनिक हिन्दी साहित्यकाल की इतिश्री हो गयी है उसे प्रगतिशील काल कहा जाना चाहिये। अब हिन्दी के लिये अंतर्जालीय युग प्रारंभ हो गया है जिसमें प्रायोजित किताबीकीड़े नहीं वरन् अंतर्जाल के निष्कामहिन्दीलेखक ही वैश्विक पथ पर मातृभाषा का रथ खींच सकते हैं।  इसमें होने वाले परिश्रम और समय का व्यय केवल निष्कामी हिन्दी लेखक कर सकते हैं पर  समाज उन्हें समर्थन दे यह भी शर्त है।
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दीपक राज कुकरेजा ‘‘भारतदीप’’
ग्वालियर मध्यप्रदेश
Deepak Raj Kukreja "Bharatdeep"
Gwalior Madhyapradesh
संकलक, लेखक और संपादक-दीपक राज कुकरेजा ‘भारतदीप’,ग्वालियर 

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