30 सितंबर 2015

मन का खेल-हिन्दी कविता(Man ka Khel-Hindi Kavita)

मन हल्का हो तो
भारी बोझ भी
इंसान उठा जाता है।

ताकतवर हो मन से
हारते हुए दाव भी
जीतकर उठा जाता है।

कहें दीपकबापू चाहने वालों से
उम्मीद होती है
ताली बजाकर मन बढ़ायेंगे
संवेदनहीन सभा में
हार मन लेकर ही उठा जाता है।
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दीपक राज कुकरेजा ‘‘भारतदीप’’
ग्वालियर मध्यप्रदेश
Deepak Raj Kukreja "Bharatdeep"
Gwalior Madhyapradesh
संकलक, लेखक और संपादक-दीपक राज कुकरेजा ‘भारतदीप’,ग्वालियर 

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