आशिक शिष्य ने अपने इश्क गुरु से कहा
‘‘आदरणीय
फिर एक माशुका मेरी जिंदगी में आई
पर उसने मेरा इश्क का मामला
मंजूर करने से पहले
सच बोलने वाली मशीन के सामने
साक्षात्कार की शर्त लगाई।
आपसे सलाह लेकर अपने इश्क के मसले
सुलझाने में पहले भी
मदद नहीं मिली
इसलिये इस बार इरादा नहीं था
आपके पास आने का
पर क्या करता जो यह
एकदम नई समस्या आई।’’
इश्क गुरु ने कहा
‘‘कमबख्त! हर बार पाठ पढ़ जाता है
नाकाम होकर फिर लौट आता है
मेरे कितने चेले इश्क में इतिहास बना चुके हैं
पर केवल तेरी वजह से
मुझे असफल इश्क गुरु कहा जाता है
इस बार तुम घबड़ाना नहीं
सच का सामना करने के लिये
मैदान पर उतर जा
रख दे माशुका से भी
सच का सामना करने की शर्त
उसकी असलियत की भी उधड़ेगी पर्त
वह घबड़ा जायेगी
अपनी शर्त भूल जायेगी
तुम्हारी अक्लमंदी देखकर कर लेगी
जल्दी सगाई।’’
कुछ दिन लौटकर चेला
गुरु के सामने आया
चेहरे से ऐसा लगा जैसे पूरे जमाने ने
उस अकेले को सताया
बोला दण्डवत होकर
‘’गुरु जी, आपका पाठ इस बार भी
काम न आया
माशुका सुनकर मेरा प्रस्ताव
कुछ न बोली
बाद में उसने यह संदेश भिजवाया कि
‘भले ही न करना था
सच की मशीन का सामना
कोई बात नहीं थी
पर मुझ पर मेरी शर्त थोपकर
तुमने मेरा विश्वास गंवाया
इसलिये तय किया कि
किसी दूसरे से सच का सामना
करने के लिये नहीं कहूंगी
पर तुमने शर्त नहीं मानी
इसलिये आगे तुम्हारे इश्क को
अब दर्द की तरह नहीं सहूंगी
कर ली मैंने
अपने माता पिता के चुने लड़के से ही सगाई’
अफसोस! इस बार भी गुरु की सलाह
काम न आई’’
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लेखक संपादक-दीपक भारतदीप
शब्द अर्थ समझें नहीं अभद्र बोलते हैं-दीपकबापूवाणी (shabd arth samajhen
nahin abhardra bolte hain-Deepakbapuwani)
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*एकांत में तस्वीरों से ही दिल बहलायें, भीड़ में तस्वीर जैसा इंसान कहां
पायें।*
*‘दीपकबापू’ जीवन की चाल टेढ़ी कभी सपाट, राह दुर्गम भाग्य जो सुगम पायें।।*
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5 वर्ष पहले
1 टिप्पणी:
बहुत बढ़िया हास्य रचना . बधाई
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