अक्ल रख दी गिरवी
ख्वाब दिखाने वालों के पास
नयी सोच से घबड़ाते है
करते अवतार की आस
ऐसे लोग क्या इशारा समझेंगे।
किनारे पर ही खड़े
जो लहरों की अठखेलियां देख डर रहे हैं
वह मझधार में उनके तूफान से क्या लड़ेंगे।
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मन तो चंचल है
उसे स्वयं ही बहलाओ
नहीं तो कोई दूसरा उसे
बहकाकर ले जायेगा
तुम भी बंधे चले जाओगे।
फिर तरसोगे आजादी के लिये
जिसे केवल सपने में ही देख पाओगे।
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लेखक संपादक-दीपक भारतदीप
शब्द अर्थ समझें नहीं अभद्र बोलते हैं-दीपकबापूवाणी (shabd arth samajhen
nahin abhardra bolte hain-Deepakbapuwani)
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*एकांत में तस्वीरों से ही दिल बहलायें, भीड़ में तस्वीर जैसा इंसान कहां
पायें।*
*‘दीपकबापू’ जीवन की चाल टेढ़ी कभी सपाट, राह दुर्गम भाग्य जो सुगम पायें।।*
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5 वर्ष पहले
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