15 मार्च 2015

बाबा रामदेव और श्रीरवि शंकर योग साधना के चरमोत्कर्ष रूप का प्रमाण-हिन्दी चिंत्तन लेख(Baba ramdev aur shri ravi shankar yoga sadhana ke charmotkarsh roop ka praman-hindi thought article)



          आज बाबा रामदेव का एक टीवी चैनल पर साक्षात्कार देखा।  हम जैसे योग  साधक और गीता पाठक के लिये यह महत्वपूर्ण नहीं है कि वह किस विषय पर क्या बोल रहे हैं? वरन् हमारी दिलचस्पी इस बात में रहती है कि चर्चित विषय पर अपनी गहन दृष्टि संक्षिप्त तथा सांकेतिक शब्दों में व्यक्त करते हैं। उनके मुख पर तेज तथा वाणी का प्रभाव हमारे लिये रुचिकर विषय रहता है। तब यह कहना ही पड़ता है। बाबा रामदेव योग साधना के चरमोत्कर्ष रूप का प्रमाण है। एक ग्रामीण परिवार में जन्मा बालक भी योग माता की कृपा से वैश्विक स्तर पर किस तरह महान छवि बना सकता है इससे यही प्रमाणित होता है।
          अनेक लोग बाबा पर योग को व्यवसायिक होने का आरोप लगाते हैं।  अनेक विद्वान उनके पतंजलि योग संस्थाना बना लेने पर नाखशी दिखाते हैं।  कई लोग तो यह कहते हैं कि किसी योगी को माया से मतलब नहीं रखना चाहिये जबकि वह चारों तरफ उससे घिरे हैं। हमारा मानना है कि जिस तरह देह के संचालन के लिये सत्यरूपी आत्मा होना आवश्यक है उसी तरह माया भी उसकी साथी है। अंतर इतना है कि धनिक लोग माया के पीछे चाकर की तरह लगे रहते हैं जबकि संतों के पास वह दासी बनकर स्वयं जाती है। दूसरी बात यह कि बाबा रामदेव ने जो संपत्ति कमाई उसका वह उपभोग अपना प्रभाव बढ़ाने या उसे दिखाने में नहीं करते वरन् कहीं न कहीं उनसे जुड़े लोग ही उससे लाभान्वित हैं। आज भी उनकी छवि एक महान योगाचार्य की है।
          इस लेखक ने लगभग 13 वर्ष पूर्व योग साधना का अभ्यास प्रारंभ किया था। भारतीय योग संस्थान का एक स्थानीय शिविर में जब यह अभ्यास होता तब हास्यासन के समय अनेक उद्यान में घूम रहे लोग अजीब दृष्टि से देखते थे। इतना ही नहीं कभी घर में सिंहासन या हास्यासन करने पर बाहर से देखने वाले लोग भी हैरान होकर देखते थे। कालांतर में जब बाबा रामदेव के प्रचार के बाद योग साधना ने इतना महत्व प्राप्त कर लिया कि अब सिंहासन तथा हास्यासन पर कोई परेशान होता नहीं दिखता।  इतना ही नहीं अनेक पार्कों में लोग योग साधना संकोचरहित होकर करते हैं क्योंकि अब उन्हें आश्चर्य से देखने वाली आंखें सहजता से देखने की अभ्यस्त हो चुकी हैं।
          बाबा रामदेव के साथ ही श्रीरविशंकर भी योग साधना के क्षेत्र में बहुत काम कर रहे हैं।  उनके भी कुुछ कार्यक्रमों में जाने का अवसर मिला। बाबा रामदेव और श्री रविशंकर के कार्यक्रमों में हमने कभी योग साधना नहीं की पर वहां जाकर जो अध्यात्मिक प्रसाद प्राप्त होता है वह अन्य विवाह, सम्मेलन या पार्टियों में नहीं मिल सकता।  सामान्य कार्यक्रमों में सम्मिलित होने के बाद उस मोर की तरह हो जाती है जो नाचने के बाद अपने पैर गंदे देखकर रोता है जबकि योग कार्यक्रम में शामिल होने के बाद मन में स्फूर्ति पैदा होती है।
          कहने का अभिप्राय यह है कि योग विद्या से संपर्क होने पर स्वभावगत परिवर्तन होते हैं। यही कारण है कि बाबा रामदेव और श्रीरविशंकर के व्यवसायों पर वही लोग प्रतिकूल टिप्पणियां करते हैं जिनके अंदर योग की शक्ति का ज्ञान नहीं है। जबकि योगभ्यास करने वाले लोग भले ही इन महानुभावों के शिष्य न हों पर उनकी आलोचना नहीं करते।
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दीपक राज कुकरेजा ‘‘भारतदीप’’
ग्वालियर मध्यप्रदेश
Deepak Raj Kukreja "Bharatdeep"
Gwalior Madhyapradesh
संकलक, लेखक और संपादक-दीपक राज कुकरेजा ‘भारतदीप’,ग्वालियर 

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