वह शर्मिन्दा नहीं
चाहे तुम्हें वह रास्ता बताया
जिस पर खुद कभी चले नहीं.
तुम्हारे पांवों के छाले बतलाते हैं
कि उनके कहने पर ही कदम-दर-कदम
अपने बढ़ाते रहे उस मंजिल की तरफ
जो जमीन पर नहीं बसी थी
ख्यालों में थी उनके कहीं.
उन्हें वास्ता था
तुम्हारी लाचारी से
जिस पर हमदर्दी दिखाकर
वह अपने लिए इज्जत जुटा रहे थे
उनकी अदाओं पर
लोग वाह वाह लुटा रहे थे
तुम उनके लिए एक शय से ज्यादा कभी थे ही नहीं
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लेखक संपादक-दीपक भारतदीप
शब्द अर्थ समझें नहीं अभद्र बोलते हैं-दीपकबापूवाणी (shabd arth samajhen
nahin abhardra bolte hain-Deepakbapuwani)
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*एकांत में तस्वीरों से ही दिल बहलायें, भीड़ में तस्वीर जैसा इंसान कहां
पायें।*
*‘दीपकबापू’ जीवन की चाल टेढ़ी कभी सपाट, राह दुर्गम भाग्य जो सुगम पायें।।*
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5 वर्ष पहले
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