5 अक्तूबर 2009

फुटबाल और हवा-हिंदी व्यंग्य लघुकथा (khel aur hava-hindu laghu katha)

उसने एक फुटबाल ली और उस पर लिख दिया धर्म। वह उस फुटबाल के साथ एक डंडा लेकर उस मैदान में पहुंच गया जहां गोल पोस्ट बना हुआ था। तमाम लोग वहां तफरी करने आते थे इसलिये वह पहले जोर से चिल्लाया और बोला-‘है कोई जो सामने आकर मुझे गोल करने से रोक सके।’
उसने अपनी आंखों पर चश्मा लगा लिया था। उसका डीलडौल और हाथ में डंडा देखकर लोग डर गये और फिर वह शुरु हो गया उसके गोल करने का सिलसिला। एक के बाद एक गोल कर वह चिल्लाता रहा-है कोई जो मेरा सामना कर सके। देखों धर्म को मैं कैसे लात मारकर गोल कर रहा हूं।’
लोग देखते और चुप रहते। कुछ बच्चे शोर बचाते तो कुछ बड़े कराहते हुए आपस में एक दूसरे का सांत्वना देते कि कोई तो माई का लाल आयेगा जो उसका गोल रोकेगा।’
उसी समय एक ज्ञानी वहां से निकला। उसने यह दृश्य देखा और फिर उसके पास जाकर बोला-‘क्या बात है? सामने कोई गोल पर तो है नहीं जो गोल किये जा रहे हो।’
वह बोला-‘तुम सामने आओ। मेरा गोल रोककर दिखाओ। यह फुटबाल मैंने एक कबाड़ी से खरीदी है और मैं चाहता हूं कि कोई मेरे से गोल गोल खेले।

ज्ञानी ने कहा-‘ यह होता ही है। अगर फुटबाल है तो खेलने का मन होगा। डंडा है तो उसे भी किसी को मारने का मन आयेगा। ऐसे में तुम्हारे साथ कोई नहीं खेलने आयेगा।’
उसने कहा-‘तुम ही खेल लो। दम है तो आ जाओ सामने।’
ज्ञानी ने उससे फुटबाल हाथ में ली और उसकी हवा भरने के मूंह पर जाकर उसका ढक्कन खोल दिया। वह पूरी हवा निकल गयी।
वह चिल्लाने लगा और बोला-‘अरे, डरपोक हवा निकाल दी। अभी डंडा मारता हूं।’
ज्ञानी ने कहा-‘फंस जाओगे। यहां बहुत सारे लोग हैं। फुटबाल पर तुमने धर्म लिखकर लोगों की भावनाओं को संशकित कर दिया था पर अब वह यहीं आयेंगे। देखो वह आ रहे हैं।’
उसने देखा कि लोग उसकी तरफ आ रहे हैं। ज्ञानी ने कहा-‘तुम अब घर जाओ। यह तुम नहीं फुटबाल थी जो तुमसे खेल रही थी। फुटबाल में हवा भरी थी जो उसके साथ तुम्हें भी उड़ा रही थी। वैसे तुम्हारी देह भी हवा से चल रही है पर यह हवा तुम्हारे दिमाग को भी चला रही थी। अब न यह फुटबाल चलेगी न डंडा।’
वह ज्ञानी ऐसा कहकर चल दिये तो तफरी करने आये एक सज्जन ने पूछा-‘पर आपने सब क्यों और कैसे किया?’
ज्ञानी ने कहा-‘मैंने कुछ नहीं किया। यह तो हवा ने किया है। उसे फुटबाल में भरी हवा ने बौखला दिया था। वह निकल गयी तो उसके लिये अपना यह नाटक जारी रखना कठिन था। मुझे करना ही क्या था? उसके कहने पर उसके साथ फुटबाल खेलने से अच्छा है कि उसकी हवा निकाल कर मामला ठंडा कर दो। फुटबाल खेलता तो वह गोल रोकने को लेकर विवाद करता। मेरे गोल पर आपत्तियां जताता। उसको छोड़ कर जाता तो वह यहां भीड़ के लोगों को बेकार में डराता। इससे अच्छा है कि धर्म नाम लिखकर झगड़ा बढ़ाने की उसकी योजना को फुटबाल में से हवा निकाल कर बेकार कर दिया जाये।’
...............................

लेखक संपादक-दीपक भारतदीप
‘दीपक भारतदीप की हिन्दी-पत्रिका’ पर मूल रूप से लिखा गया है। इसके अन्य कहीं भी प्रकाशन की अनुमति नहीं है।
अन्य ब्लाग
1.दीपक भारतदीप की शब्द पत्रिका
2.दीपक भारतदीप का चिंतन
3.दीपक भारतदीप की शब्दयोग-पत्रिका

hindi article, hindi sahitya, shori story, कला, मनोरंजन, मस्त राम, मस्ती, समाज, हिंदी साहित्य

कोई टिप्पणी नहीं:

समस्त ब्लॉग/पत्रिका का संकलन यहाँ पढ़ें-

पाठकों ने सतत अपनी टिप्पणियों में यह बात लिखी है कि आपके अनेक पत्रिका/ब्लॉग हैं, इसलिए आपका नया पाठ ढूँढने में कठिनाई होती है. उनकी परेशानी को दृष्टिगत रखते हुए इस लेखक द्वारा अपने समस्त ब्लॉग/पत्रिकाओं का एक निजी संग्रहक बनाया गया है हिंद केसरी पत्रिका. अत: नियमित पाठक चाहें तो इस ब्लॉग संग्रहक का पता नोट कर लें. यहाँ नए पाठ वाला ब्लॉग सबसे ऊपर दिखाई देगा. इसके अलावा समस्त ब्लॉग/पत्रिका यहाँ एक साथ दिखाई देंगी.
दीपक भारतदीप की हिंद केसरी पत्रिका


हिंदी मित्र पत्रिका

यह ब्लाग/पत्रिका हिंदी मित्र पत्रिका अनेक ब्लाग का संकलक/संग्रहक है। जिन पाठकों को एक साथ अनेक विषयों पर पढ़ने की इच्छा है, वह यहां क्लिक करें। इसके अलावा जिन मित्रों को अपने ब्लाग यहां दिखाने हैं वह अपने ब्लाग यहां जोड़ सकते हैं। लेखक संपादक दीपक भारतदीप, ग्वालियर

संबद्ध विशिष्ट पत्रिकायें

लोकप्रिय पत्रिकाएँ

वर्डप्रेस की संबद्ध अन्य पत्रिकायें