माशुका ने पूछा आशिक से
‘अगर शादी के बाद मैं
मर गयी तो क्या
मेरी याद में ताजमहल बनवाओगे।’
आशिक ने कहा
‘किस जमाने की माशुका हो
भूल जाओ चैदहवीं सदी
जब किसी की याद में
कोई बड़ी इमारत बनवाई जाती थी,
फिर समय बदला तो
किसी की याद में कहीं पवित्र जगह पर
बैठने के लिये बैंच लगती तो
कहीं सीढ़ियां बनवायी जाती थी,
अब तो किस के पास समय है कि
धन और समय बरबाद करे
अब तो मरने वाले की याद में
बस, मोमबत्तियां जलाई जाती हैं
दिल में हो न हो
बाहर संवेदनाएं दिखाई जाती हैं
हमारा दर्शन कहता है कि
जीवन और मौत तो
जिंदगी का हिस्सा है
उस पर क्या हंसना क्या रोना
अब यह मत पूछना कि
मेरे मरने पर मेरी अर्थी पर
कितनी मोमबतियां जलाओगे।’
कवि, लेखक और संपादक-दीपक भारतदीप, ग्वालियर‘अगर शादी के बाद मैं
मर गयी तो क्या
मेरी याद में ताजमहल बनवाओगे।’
आशिक ने कहा
‘किस जमाने की माशुका हो
भूल जाओ चैदहवीं सदी
जब किसी की याद में
कोई बड़ी इमारत बनवाई जाती थी,
फिर समय बदला तो
किसी की याद में कहीं पवित्र जगह पर
बैठने के लिये बैंच लगती तो
कहीं सीढ़ियां बनवायी जाती थी,
अब तो किस के पास समय है कि
धन और समय बरबाद करे
अब तो मरने वाले की याद में
बस, मोमबत्तियां जलाई जाती हैं
दिल में हो न हो
बाहर संवेदनाएं दिखाई जाती हैं
हमारा दर्शन कहता है कि
जीवन और मौत तो
जिंदगी का हिस्सा है
उस पर क्या हंसना क्या रोना
अब यह मत पूछना कि
मेरे मरने पर मेरी अर्थी पर
कितनी मोमबतियां जलाओगे।’
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1 टिप्पणी:
हसना तो चाह रहा था पर हस नही पाया. यह तो कटु सत्य है
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