28 फ़रवरी 2014

अंधी चाहत में इंसान की हर रग-हिन्दी व्यंग्य कविता(andhi chahat mein insan ki har)



 कहना कठिन हो गया कौन कारोबारी और कौन ठग है,
लोगों की नज़रों में दौलतमंद शख्स ही  हीरे का नग है।
कायदा हो गया यह धोखे से आये या वफा से पैसा आना चाहिये,
खाली जेब तफरी करने की मजबूरी किसी को  न बताईये,
पर्दे पर चमकते देखे हैं हमने कई सितारे अप्सराओं के साथ,
संभालते थे लोगों का खजाना चोरी करते पकड़े गये वही हाथ,
रोटी से पेट भरता है मगर दौलत की भूख किसी की मिटी नहीं,
खौफनाक रास्ते पर चलते ठिठककर रुके जब भद्द पिटी कहीं,
कहें दीपक बापू ईमानदार और बेईमानी की पहचान कठिन हुई
दुनियां जीतने की अंधी चाहत में फंस गयी इंसान की हर रग है।
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लेखक एवं कवि-दीपक राज कुकरेजा ‘‘भारतदीप,
ग्वालियर मध्यप्रदेश
writer and poet-Deepak raj kukreja "Bharatdeep"
Gwalior Madhyapradesh
लेखक और संपादक-दीपक "भारतदीप",ग्वालियर
poet, writer and editor-Deepak 'BharatDeep',Gwalior
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