19 दिसंबर 2009

स्यापा पसंद-हिन्दी व्यंग्य कवितायें (syapa pasand-hindi vyangya kavita)

 कुछ लोगों की मौत पर

बरसों तक रोने के गीत गाते,

कहीं पत्थर तोड़ा गया

उसके गम में बरसी तक मनाते,

कभी दुनियां की गरीबी पर तरस खाकर

अमीर के खिलाफ नारे लगाकर

स्यापा पसंद लोग अपनी

हाजिरी जमाने के सामने लगाते हैं।

फिर भी तरक्की पसंद कहलाते हैं।

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लफ्जों को खूबसूरत ढंग से चुनते हैं

अल्फाजों को बेहद करीने से बुनते हैं।

दिल में दर्द हो या न हो

पर कहीं हुए दंगे,

और गरीब अमीर के पंगे,

पर बहाते ढेर सारे आंसु,

कहीं ढहे पत्थर की याद में

इस तरह दर्द भरे गीत गाते धांसु,

जिसे देखकर

जमाने भर के लोग

स्यापे में अपना सिर धुनते हैं।

कवि, लेखक और संपादक-दीपक भारतदीप, ग्वालियर
http://anant-shabd.blogspot.com

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